गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

उनसे प्यार कर लिया..

अच्छी खासी शख्शियत को बेकार कर लिया,
हमने भी जिद छोड़ दी उनसे प्यार कर लिया..

जब उसे छोड़ने की कोई तरकीब न निकली तो,
फिर उसके सामने खुद को गुनहगार कर लिया..

अपनी परछाईं भी दिखे तो क़त्ल कर दें उसका,
फिर पता नहीं उनपे कैसे भला ऐतबार कर लिया..

जब भी चाहा दिल ने कि उनका दीदार हो जाए,
तस्वीर को सीने से लगा विसाल-ए-यार कर लिया..

उस झील के पत्थर पे बैठ काट आये सारा दिन,
बस यूँ ही झूठ मूठ का तुम्हारा इंतज़ार कर लिया..

लफ़्ज़ों में घुल के आ गई उसके जिक्र की खुशबु,
लो हमने भी ग़ज़ल का मुखड़ा तैयार कर लिया..

जब से पलकों के शामियाने में दस्तक हुई उसकी,
नींद ने भी आँखों में आने से इनकार कर लिया..

सुना है उसके कानों को सच सुनने की आदत नहीं
तो हमने भी खुद को झूठ का फनकार कर लिया..


गुरुवार, 28 नवंबर 2013

अब उसका ख्वाब में आना..

अब उसका ख्वाब में आना भी क़यामत जैसे,
आँख बंद करने में महसूस होती है दहशत जैसे..

सब उसकी दास्तां कहें हमारा रोना कौन सुने,
तमाम शहर पे हो चलती उसकी हुकूमत जैसे..

जब भी मिलता है तो एक नई शर्त रख देता है,
लगता है कारोबार बन गई अब मोहब्बत जैसे..

उसके लिए तो अलग होना कोई दिल्लगी जैसे,
और मेरे लिए तो लुट गई हो कोई सल्तनत जैसे..

उफ़ ये बेकरारी ये तिशनगी ये तन्हाई और तड़प,
मोहब्बत मोहब्बत न हो यारो, कोई आफत जैसे..

बना है दर्द से रिश्ता तो उसका एहतराम है जरूरी,
हमको होती जा रही है मुक़र्रर इसकी आदत जैसे..

एक अर्से से कोशिश में हूँ कि मुस्कुरा लूं कभी,
मगर वो लम्हा देना ही नहीं चाहती किस्मत जैसे..

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

मोहब्बत बनी कश्मीर

जिंदगी जख्म की तस्वीर बनके रह गई,
तू मेरे दिल पे लगी तीर बनके रह गई..

मैं बना फिरता हूं दीवाना तेरे गम में,
तू मेरे पैरों की जंजीर बनके रह गई..

इस जमाने के तानों को सुनते-सुनते,
ये तमाशा मेरी तकदीर बनके रह गई..

सरहदें पारकर हम-तुम न मिल पाए कभी,
ये मुहब्बत भी कश्मीर बनके रह गई..

गुरुवार, 2 मई 2013

प्यार क्यूँ हो जाता है


अचानक मिलती है किसी से ये आँखें,
फिर वो शक्श कुछ ख़ास हो जाता है..

मिलते है फिर वो अक्सर यूँही राहों में,
बिना सोचे हमें उस से प्यार हो जाता है..

चाहे कितने भी लोग मिलें हमें फिर,
लेकिन हमें बस वही शख्श भाता है..

फिर होती है कुछ मुलाकातें और बातें,
कुछ ही दिनों में फिर इजहार हो जाता है..

लगने लगता है बस वो ही शख्श अपना,
बाकी सब से वो बहुत दूर हो जाता है..

कुछ ही समय तक होती हैं प्यार से बातें,
फिर साथ  साथ रहना दुश्वार हो जाता है..

फिर करता है वो भगवान् से एक ही सवाल,
आखिर हमको ये प्यार क्यूँ हो जाता है..

रविवार, 28 अप्रैल 2013

कैसा प्यार करती थी


मैं रहता था हरदम हरपल उसके साथ उसके पास,
कुएं के पास होकर भी पानी की तलाश करती थी..

मैं कुछ भी कर बैठता था उसकी मुस्कराहट के लिए,
लेकिन वो ख़ुशी के ढेर में सदमे तलाश करती थी..

अजीब थी उसकी फितरत भी और उसकी आदतें भी,
मेरी खामोशियों में भी शोर की तलाश करती थी..

जब भी बैठता था मैं उसके साथ चाँद की चांदनी में,
पता नहीं कौनसे खोये हुए लम्हे तलाश करती थी..

लुटाता था मैं उस पर अपना प्यार पागलों की तरह,
लेकिन वो घुमा फिरा के जुदाई की बात करती थी,

अंत में जब आज़ाद कर ही दिया मैंने मोहब्बत से उसे,
फिर साथ में रहने कि मिन्नतें बार बार करती थी..

शनिवार, 23 मार्च 2013

23 मार्च, 1931 एक काला दिन




23 मार्च, 1931 एक काला दिन
मैं कोई इतना बड़ा लेखक तो नहीं हूँ कि भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु के बारे में कुछ कह सकूँ या लिख सकूँ लेकिन आज कि तारिक को याद करके मेरी किलम कागज पर अपने आप थिरक गयी..
आज ही के दिन यानी २३ मार्च1931 की मध्य रात्री को ही भारत को आजादी दिलाने वाले तीन महत्वपूर्ण क्रांतिकारियों भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था.. अदालती आदेश की तरफ अगर देखा जाए तो ये फांसी २४ मार्च १९३१ को दी जाने वाली थी लेकिन अंग्रेजी हुकूमत को भगत सिंह की लोकप्रियता से डर लगने लगा था और उन्हें उम्मीद थी कि कहीं आम जनता कोई बड़ा विद्रोह ना खड़ा करदे इसलिए उनको पिछली रात करीब 7 बजे के आस पास ही फांसी पर लटका दिया गया और उनके शव उनके रिश्तेदारों को देने की वजाय रातों रात ले जाकर व्यास नदी के किनारे जला दिए गए थे..
आइये भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु के बारे में कुछ जानें..
भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गाँव जो कि अब पाकिस्तान में हैं में हुआ था. उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर थाउनके पिता और उनके दो चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह भी अंग्रजों के खिलाफ आजदी कि लड़ाई लड़ चुके थे इसलिए हम कह सकते हैं कि भगत सिंह को देशभक्ति विरासत में मिली थी.
भगत सिंह की प्राथमिक शिक्षा तो उनके गावं के स्कूल में ही हुई लेकिन बाद में उनका दाखिला लाहौर के डीएवी स्कूल में करवा दियावहां उनका संपर्क लाला लाजपत राय और अम्बा प्रसाद जैसे देशभक्तों से हुआ. शुरू से ही उनका मन पढाई में कम और देश के बारे में सोच विचार करने में ज्यादा लगता था. और वो क्लास में कम पुस्तकालय में ज्यादा पाए जाते थी उन्हें क्रांतिकारियों की जीवनी पढने का बहुत ज्यादा शौक था.. 
1920 के असहयोग आन्दोलन से जो छात्र प्रभावित हुए थे उनके लिए लाला लाजपत राय ने लाहौर में नेशनल कॉलेज” की स्थापना की. भगत सिंह भी वहां पर पढने गए और वहीँ पर उनकी दोस्ती यशपालभगवती चरणसुखदेवतीरथराम आदि से हुई और उन्होंने कई नाटक भी करे जिस से देश के लोगों में वो आजादी की भावना पैदा कर सकें.
1923 में उनके पिटा ने उनकी शादी तय करदी लेकिन वो घर छोड़ के ये कह के भाग गए कि मैं शादी के लिए नहीं बना हूँ”.
1924 में उनकी मुलाक़ात चन्द्रशेखर आज़ाद से हुई और फिर दोनों ने मिलकर अंग्रेजों कि नाक में खूब दम कर दिया..
३० अक्टूबर1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में हुए जुलुस जो कि साइमन कमीशन” के विरोध में किया गया था उनमे भी भगत सिंह एवं उनके साथियों ने बड चढ़ के हिसा लिया था और इसी जुलुस में लाला लाजपत राय जी कि म्रत्यू हो गई. लाला जी कि म्रत्यु का भगत सिंह को बहुत बड़ा सदमा बैठ गया और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से बदला लेनी की ठान ली और उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर सान्डर्स की ह्त्या कर दी जिस से कि वो पूरे देश भर में एक क्रांतिकारी के रूप में उभरे..
जो क्रान्ति लोगों के दिल में पनप रही थी उसे दबाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने सेफ्टी बिल” और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूट” बिल पास करने की ठान ली जिसके विरोध में भगत सिंह और उनके साथी बटुकेस्वर दत्त ने 8 अप्रैल1929 को असेम्बली में बम फोड़ा जिस से उन्होंने किसी को हानि नहीं पहुंचाई बस अवाम तक अपना एक सन्देश पहुंचाया जिससे कि वो जाग जाए और आज़ादी की लड़ाई खुद लड़ें.
भगत सिंह और उनके सभी साथियों को गिरिफ्तार करके उनपर लाहौर षड्यंत्र” का मुकदमा चलाया गया जिसका निर्णय 7 अक्टूबर 1930 को दिया गया जिसमे मुख्य आरोपी भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गयी.
अंग्रेजों ने भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु को तो ख़तम कर दिया लेकिन उनके विचारों को ख़तम नहीं पाए जिसने देश की आजादी की नींव रख दी.
कुछ महत्वपूर्ण बातें जो हमें याद करनी चाहिए
इन्कलाब जिंदाबादसाम्राज्यबाद मुर्दावाद” – भगत सिंह ने फांसी के पूर्व ये नारा लगाया था.
दिल से निकले गीत मरकर भी वतन की उल्फतमेरी मिटटी से भी खुशबू-ऐ-वतन आएगी” (23 मार्च 1931 को भगत सिंह ने फांसी के फंदे तक पहुँचने से पूर्व ये पंक्तियाँ गई थी)

भगत सिंह द्वारा लिखी हुई कुछ पंक्तियाँ और शेर
·       पिस्तौल और बम्ब कभी इन्कलाब नहीं लातेवल्कि इन्कलाब की तलवार विचारों की शान पर तेज़ होती है
·       दिल दे तू इस मिजाज़ का परवदिगार देजो गम की घडी को भी ख़ुशी से गुजार दे
·       सजा के मय्यत-ऐ-उम्मीद नाकामी के फूलों सेकिसी हमदर्द ने रख दी मेरे टूटे दिल में
·       तुझे जबह करने की ख़ुशी और मुझे मरने का शौकमेरी भी मर्जी वही है जो मेरे सयाद की

भगत सिंह के द्वारा लिखे हुए कुछ लेख


सुखदेव
सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को गोपरा, लुधियाना, पंजाब में हुआ था. उनके पिता का नाम रामलाल थापर था, जो अपने व्यवसाय के कारण लायलपुर में रहते थे। इनकी माता रल्ला देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं. दुर्भाग्य से जब सुखदेव तीन वर्ष के थे, तभी इनके पिताजी का देहांत हो गयाइनका लालन-पालन इनके ताऊ लाला अचिन्त राम ने कियावे आर्य समाज से प्रभावित थे तथा समाज सेवा व देशभक्तिपूर्ण कार्यो में अग्रसर रहते थे. इसका प्रभाव बालक सुखदेव पर भी पड़ा जब बच्चे गली-मोहल्ले में शाम को खेलते तो सुखदेव अस्पृश्य कहे जाने वाले बच्चों को शिक्षा प्रदान करते थे.
वर्ष 1926 में लाहौर में नौजवान भारत सभा का गठन हुआइसके मुख्य योजक सुखदेव, भगत सिंह, यशपाल, भगवती चरण व जयचन्द्र विद्यालंकार थे. परन्तु कुछ मतभेदों के कारण इसकी अधिक गतिविधि न हो सकी और अप्रैल, 1928 में इसका पुनर्गठन हुआ तथा इसका नाम नौजवान भारत सभा ही रखा गया तथा इसका केंद्र अमृतसर बनाया गया.
सितंबर, 1928 में ही दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के खंडहर में उत्तर भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई इसमें एक केंद्रीय समिति का निर्माण हुआ. संगठन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मीक रखा गया सुखदेव को पंजाब के संगठन का उत्तरदायित्व दिया गया. और फिर उन्होंने भगत सिंह के साथ काम किया और शहादत हासिल की..

राजगुरु

राजगुरु का पूरा नाम 'शिवराम हरि राजगुरुथा, राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव में हुआ थाजिसका नाम अब 'राजगुरु नगरहो गया है. उनके पिता का नाम 'श्री हरि नारायणऔर माता का नाम 'पार्वती बाईथा. राजगुरु `स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे हासिल करके रहूंगाका उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे.
जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही राजगुरु का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ होने लगा था. राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी 'जे. पी. सांडर्सको गोली मार दी थी और ख़ुद को अंग्रेज़ी सिपाहियों से गिरफ़्तार कराया था.
और अंत में उन्हें भी भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी पर चड़ा दिया गया

ये सब लिखते लिखते यकीन मानिए मेरी आँख में आंसू हैं...

ये लेख मेरे दिमाग की उपज नहीं है जो उनके बारे जहाँ से पढने को मिला और उनके बारे में जाना बस वही आपके साथ साझा कर रहा हूँ..

सोमवार, 18 मार्च 2013

भूल रहा हूँ उसको..


उसे शायद मुझसे बिछड़ने का कोई गम नहीं,
हमने भी सोचा उसके लिए मरेंगे हम भी नहीं..

कह के गया है वो तुम में अब पहले जैसी बात नहीं,
कहा मैंने तेरी चाहत में भी पहले जैसे जज्बात नहीं..

उसने कहा अब जिंदगी किसी और के साथ जिओ,
मैंने कहा शायद किसी में तुझ जैसी बात है ही नहीं..

उसने कहा मैंने तो कहा नहीं था इतना चाहने को,
मैंने कहा मैं इनसान ही हूँ कोई पत्थर तो नहीं..

पुछा उसने बड़े प्यार से क्या मैंने बेबफाई की है,
मैंने कहा बेबफाई मुक्कदर है मेरा तेरी खता नहीं..

कह के गया है कि भूल जा कैसे भी करके मुझको,
मैंने कहा ये सब हकीकत है कोई ख्वाब तो नहीं...

गुरुवार, 7 मार्च 2013

मुझमे तू रहता है...


ना बताऊंगा तेरी बेबफाई के किस्से किसीको,
मेरी जान मैंने तुम्हे अपना माना बहुत है..

दिल धडकता है अब बस तेरे ही नाम से,
इस दिल ने जान तुझको पुकारा बहुत है..

आँखें अब बस देखना चाहें तेरे ही ख्वाब,
इन आँखों ने कभी तुझे निहारा बहुत है..

जब भी दुआ मांगी है बस तुझे ही माँगा,
मेरी जान मैंने तुझे चाहा ही बहुत है..

जब भी तनहा होता हूँ तू याद आती है,
मेरे इस दिमाग ने तुझको सोचा बहुत है..

देखता हूँ रातभर बैठकर मैं अब चाँद को,
आँखों से बहती अब बरसात बहुत है..

सोचता हूँ तुझे इस दिल से निकाल फेंकू,
लेकिन इस दिल में तेरी यादें बहुत है..

चाहा कि तुझे भुला दूँ बेबफा समझकर,
भूल कर भी तू  मुझको याद आती बहुत है... 

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

तुझे अपना बना के रखूं..

तेरी सूरत को आँखों में बसा चुका हूँ मैं,
दिल चाहता है तुझे धड़कन बना के रखूं..

तुझे पाने का सपना अब देखता हूँ हरदम,
दिल चाहता है तुझे मैं तुझसे चुरा के रखूं..

तुझे चाहना तुझे सोचना अब है काम मेरा,
तेरे रंग रूप को मैं सबसे छुपा के रखूं..

करलूं कैद तेरे रंग रूप को अपने दिल में,
तुझे मैं प्यार की जंजीर पहना के रखूं..

कोई जान ना पाए मेरी आँखों में कौन है,
मैं अपनी आँखों को समुन्दर बना के रखूं..

दिल कहता है अब कोई और तुझसे ना मिले,
आखिरी सांस तक तुझे अपना बना के रखूं..

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

मैं साया हूँ तेरा..


जिंदगी में कभी खुद को अकेला ना समझना,
साथ हूँ मैं तेरे साया बनकर जुदा ना समझना,

चाहता हूँ मैं तुमको अपनी जान से भी ज्यादा,
मेरी मोहब्बत को कभी मजाक मत समझना,

तुमसे मेरी ज़िन्दगी है और है मेरी मौत भी,
जीवन में कभी भी मुझे अनजान ना समझना,

वादा है मेरा कि रहूँगा मैं तेरे साथ जीवन भर,
अगर ज़िन्दगी साथ न दे बेबफा ना समझना,

अब भी तू मेरा प्यार ठुकराना चाहे अगर,
मुक्कदर होगा ये मेरा अपनी खता ना समझना 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

तुम आये तो सब अच्छा लगा..

दुनिया की इस भीड़ में एक अजनबी का सामना अच्छा लगा,
सब से नजरें छुपा कर बस उसको निहारना बहुत अच्छा लगा,

इन आँखों के पलकों पे कुछ मीठे मीठे ख्वाब से सजने लगे,
किसी और से बातें करते करते उसको सोचना अच्छा लगा,

कह तो वैसे भी हम कुछ नहीं रहे थे  लेकिन उसका एकदम,
मेरे सुर्ख होटों पर रख कर हाथ उसका रोकना अच्छा लगा,

हम तो बैठे थे दिल में अपने ना जाने कितने दर्दों को लिए,
तुम्हारे दर्द अब मेरे भी है कानों को ये सुनना अच्छा लगा,

हम तो अपने दिल को बाँध बैठे थे उसको भुलाने के लिए,
वो यूं मिला कि भूलने का बुरा इरादा तोड़ना अच्छा लगा...

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

तुम हो तो सब है तुम नहीं तो कुछ नहीं...


मैं दर्दों से लिखता हूँ ज़िन्दगी के किस्से,
तुम सब दर्द उनमे से चुरा लोगे ना...

हवाओं के तेवर से बहुत मायूस हूँ मैं,
ये जलते दिए आँधियों से बचा लोगे ना...

बेखबर हैं चाँद सुध लेता ही नहीं हमारी,
तुम भी सितारों से दिल बहला लोगे ना...

सजा दें अगर अपनी शायरी क़दमों पर तुम्हारे,
अपनी पलकों पर तुम इनको उठा लोगे ना...

यकीन हैं मुझको ना भुला पाओगे तुम भी,
फांसले जो दरमियान हैं उनको मिटा दोगे ना...

चल रहा हूँ सफ़र के आखिरी पड़ाव पर,
मेरी सब तन्हाइयां अब चुरा लोगे ना...

अब रहूंगा मैं बस तुझसे ही ज़िंदा,
मेरे हर कदम पर साथ खड़े तुम होगे ना....

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

खुद को मिटाने वाले थे...


वो बहुत लडे हैं हमसे जो बड़े नाम वाले थे,
पर हम उसका दर छोड़ कर कहाँ जाने वाले थे,
हमने तो मोहब्बत निभाने की कसम खाई थी,
क्या थी खबर वो बीच रास्ते से जाने वाले थे,
आरज़ू उन्हें पाने की हमारे दिल में ही रह गयी,
साजिस थी उनकी हमारा दिल भी जलाने वाले थे,
बहुत कोशिश की सबने और तौहीन भी की है,
पर हमारे अन्दर हुनर सब दीवाने वाले थे,
अच्छा हुआ वो जल्द ही किसी और के हो गए,
वरना हम उनकी चाहत में खुद को मिटाने वाले थे...

शनिवार, 19 जनवरी 2013

अपने साथ अपना सब कुछ ले जा...


जुदा हुए ही थे तो मेरे दिल को भी साथ ले जा ,
मेरे इन प्यासे लबों से अपनी मिठाश भी ले जा,
चल और छोड़ आ मुझे कहीं घने जंगलों में,
ये धूप छाँव जैसी धुंधली आस भी ले जा,
मैं प्यासा हूँ बस तेरे प्यार के एक पल का,
अब जमी हुई मेरे होठों की प्यास भी ले जा,
मेरे कदम कदम पर सुहाने पलों की यादें है,
अब इन यादों से भरा ये इतिहास भी ले जा,
सांस सांस में खटकेगा तेरे ना होने का एहसास,
फिजा में बिखरी हुई अपनी खुसबू भी ले जा...