गुरुवार, 28 नवंबर 2013

अब उसका ख्वाब में आना..

अब उसका ख्वाब में आना भी क़यामत जैसे,
आँख बंद करने में महसूस होती है दहशत जैसे..

सब उसकी दास्तां कहें हमारा रोना कौन सुने,
तमाम शहर पे हो चलती उसकी हुकूमत जैसे..

जब भी मिलता है तो एक नई शर्त रख देता है,
लगता है कारोबार बन गई अब मोहब्बत जैसे..

उसके लिए तो अलग होना कोई दिल्लगी जैसे,
और मेरे लिए तो लुट गई हो कोई सल्तनत जैसे..

उफ़ ये बेकरारी ये तिशनगी ये तन्हाई और तड़प,
मोहब्बत मोहब्बत न हो यारो, कोई आफत जैसे..

बना है दर्द से रिश्ता तो उसका एहतराम है जरूरी,
हमको होती जा रही है मुक़र्रर इसकी आदत जैसे..

एक अर्से से कोशिश में हूँ कि मुस्कुरा लूं कभी,
मगर वो लम्हा देना ही नहीं चाहती किस्मत जैसे..