शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

ये शाम जरा ढल जाने दो


ये शाम जरा ढल जाने दो,
फिर किस्सा वही दोहराने दो..

एक मैं हूँ और एक ये मय है, 
अब आग जरा लग जाने दो..

देखेंगे कितनी बचेगी मय, 
हमको तो जरा तुम आने दो..

न जाने कब तक दौर चले, 
साक़ी को जरा शरमाने दो..

रिन्दों पे चढ़ी कुछ यूँ मस्ती, 
वो बोले आने दो आने दो..

समझेंगे तुम्हारी बातें सभी, 
पहले खुद को समझाने दो.. 

मय से भी ज्यादा नशा इनमें, 
तेरी आँखें है या पैमाने दो..

रूठा बैठा है रिन्दों का खुदा, 
उसको भी आज मनाने दो..

बन जाए न कोई बात कहीं, 
अब देर हुई घर जाने दो..

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

लो आज की रात भी गई नींद के इंतज़ार में..


लो आज की रात भी गई नींद के इंतज़ार में,
चाँद को देखते रहे उसकी दीद के इंतज़ार में..

हाय कितना मुश्किल है ये तन्हा रातें गुजारना,
लगता है कमी आ गई है वक़्त की रफ़्तार में..

बस यूँ ही कटती है रात ये करवट बदल बदल,
तेरी यादों ने ख़लल डाल दी है जैसे मेरे क़रार में..

यही दस्तूर है इसका यही मोहब्बत है शायद,
बिक जाओगे कुछ न खरीद पाओगे इस बाज़ार में..

मुझको खरीद कर ले गया महज़ दो इशारों में वो,
यही तो खास हुनर था मेरे उस ''गरीब'' खरीदार में..

कहीं दूर से टकरा के आ जाते हैं मेरे लफ्ज़ो सदायें, 
वो आता नहीं शायद मेरे दर्देदिल के मयार में..

तेरी हकीकत क्या है अब तू हमसे न छुपा सकेगा,
जरा गौर फरमा बहुत छेद है तेरे इस दुसार में..

हस्बे इत्तफ़ाक़ आज तेरा मिलना ये इत्तफ़ाक़ नहीं,
कोई तपिश उठ आई होगी शायद दिलेबेक़रार में..