रविवार, 23 फ़रवरी 2014

करके देखना...

उठ उठ के किसी का इंतज़ार करके देखना,
तुम भी कभी किसी से प्यार करके देखना...

कैसे टूटते हैं मोहब्बतों के रिश्ते,
गलतियां कभी दो चार करके देखना...

जिंदगी का हाथों से फिसलना समझना है तो,
बारिश में कच्चा मकान खडा करके देखना...

नफरत हो जायेगी तुम्हे भी इस दुनिया से,
मोहब्बत किसी से बेशुमार करके देखना...

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

ये शाम जरा ढल जाने दो


ये शाम जरा ढल जाने दो,
फिर किस्सा वही दोहराने दो..

एक मैं हूँ और एक ये मय है, 
अब आग जरा लग जाने दो..

देखेंगे कितनी बचेगी मय, 
हमको तो जरा तुम आने दो..

न जाने कब तक दौर चले, 
साक़ी को जरा शरमाने दो..

रिन्दों पे चढ़ी कुछ यूँ मस्ती, 
वो बोले आने दो आने दो..

समझेंगे तुम्हारी बातें सभी, 
पहले खुद को समझाने दो.. 

मय से भी ज्यादा नशा इनमें, 
तेरी आँखें है या पैमाने दो..

रूठा बैठा है रिन्दों का खुदा, 
उसको भी आज मनाने दो..

बन जाए न कोई बात कहीं, 
अब देर हुई घर जाने दो..

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

लो आज की रात भी गई नींद के इंतज़ार में..


लो आज की रात भी गई नींद के इंतज़ार में,
चाँद को देखते रहे उसकी दीद के इंतज़ार में..

हाय कितना मुश्किल है ये तन्हा रातें गुजारना,
लगता है कमी आ गई है वक़्त की रफ़्तार में..

बस यूँ ही कटती है रात ये करवट बदल बदल,
तेरी यादों ने ख़लल डाल दी है जैसे मेरे क़रार में..

यही दस्तूर है इसका यही मोहब्बत है शायद,
बिक जाओगे कुछ न खरीद पाओगे इस बाज़ार में..

मुझको खरीद कर ले गया महज़ दो इशारों में वो,
यही तो खास हुनर था मेरे उस ''गरीब'' खरीदार में..

कहीं दूर से टकरा के आ जाते हैं मेरे लफ्ज़ो सदायें, 
वो आता नहीं शायद मेरे दर्देदिल के मयार में..

तेरी हकीकत क्या है अब तू हमसे न छुपा सकेगा,
जरा गौर फरमा बहुत छेद है तेरे इस दुसार में..

हस्बे इत्तफ़ाक़ आज तेरा मिलना ये इत्तफ़ाक़ नहीं,
कोई तपिश उठ आई होगी शायद दिलेबेक़रार में..

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

उनसे प्यार कर लिया..

अच्छी खासी शख्शियत को बेकार कर लिया,
हमने भी जिद छोड़ दी उनसे प्यार कर लिया..

जब उसे छोड़ने की कोई तरकीब न निकली तो,
फिर उसके सामने खुद को गुनहगार कर लिया..

अपनी परछाईं भी दिखे तो क़त्ल कर दें उसका,
फिर पता नहीं उनपे कैसे भला ऐतबार कर लिया..

जब भी चाहा दिल ने कि उनका दीदार हो जाए,
तस्वीर को सीने से लगा विसाल-ए-यार कर लिया..

उस झील के पत्थर पे बैठ काट आये सारा दिन,
बस यूँ ही झूठ मूठ का तुम्हारा इंतज़ार कर लिया..

लफ़्ज़ों में घुल के आ गई उसके जिक्र की खुशबु,
लो हमने भी ग़ज़ल का मुखड़ा तैयार कर लिया..

जब से पलकों के शामियाने में दस्तक हुई उसकी,
नींद ने भी आँखों में आने से इनकार कर लिया..

सुना है उसके कानों को सच सुनने की आदत नहीं
तो हमने भी खुद को झूठ का फनकार कर लिया..


गुरुवार, 28 नवंबर 2013

अब उसका ख्वाब में आना..

अब उसका ख्वाब में आना भी क़यामत जैसे,
आँख बंद करने में महसूस होती है दहशत जैसे..

सब उसकी दास्तां कहें हमारा रोना कौन सुने,
तमाम शहर पे हो चलती उसकी हुकूमत जैसे..

जब भी मिलता है तो एक नई शर्त रख देता है,
लगता है कारोबार बन गई अब मोहब्बत जैसे..

उसके लिए तो अलग होना कोई दिल्लगी जैसे,
और मेरे लिए तो लुट गई हो कोई सल्तनत जैसे..

उफ़ ये बेकरारी ये तिशनगी ये तन्हाई और तड़प,
मोहब्बत मोहब्बत न हो यारो, कोई आफत जैसे..

बना है दर्द से रिश्ता तो उसका एहतराम है जरूरी,
हमको होती जा रही है मुक़र्रर इसकी आदत जैसे..

एक अर्से से कोशिश में हूँ कि मुस्कुरा लूं कभी,
मगर वो लम्हा देना ही नहीं चाहती किस्मत जैसे..

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

मोहब्बत बनी कश्मीर

जिंदगी जख्म की तस्वीर बनके रह गई,
तू मेरे दिल पे लगी तीर बनके रह गई..

मैं बना फिरता हूं दीवाना तेरे गम में,
तू मेरे पैरों की जंजीर बनके रह गई..

इस जमाने के तानों को सुनते-सुनते,
ये तमाशा मेरी तकदीर बनके रह गई..

सरहदें पारकर हम-तुम न मिल पाए कभी,
ये मुहब्बत भी कश्मीर बनके रह गई..

गुरुवार, 2 मई 2013

प्यार क्यूँ हो जाता है


अचानक मिलती है किसी से ये आँखें,
फिर वो शक्श कुछ ख़ास हो जाता है..

मिलते है फिर वो अक्सर यूँही राहों में,
बिना सोचे हमें उस से प्यार हो जाता है..

चाहे कितने भी लोग मिलें हमें फिर,
लेकिन हमें बस वही शख्श भाता है..

फिर होती है कुछ मुलाकातें और बातें,
कुछ ही दिनों में फिर इजहार हो जाता है..

लगने लगता है बस वो ही शख्श अपना,
बाकी सब से वो बहुत दूर हो जाता है..

कुछ ही समय तक होती हैं प्यार से बातें,
फिर साथ  साथ रहना दुश्वार हो जाता है..

फिर करता है वो भगवान् से एक ही सवाल,
आखिर हमको ये प्यार क्यूँ हो जाता है..