रविवार, 28 अप्रैल 2013

कैसा प्यार करती थी


मैं रहता था हरदम हरपल उसके साथ उसके पास,
कुएं के पास होकर भी पानी की तलाश करती थी..

मैं कुछ भी कर बैठता था उसकी मुस्कराहट के लिए,
लेकिन वो ख़ुशी के ढेर में सदमे तलाश करती थी..

अजीब थी उसकी फितरत भी और उसकी आदतें भी,
मेरी खामोशियों में भी शोर की तलाश करती थी..

जब भी बैठता था मैं उसके साथ चाँद की चांदनी में,
पता नहीं कौनसे खोये हुए लम्हे तलाश करती थी..

लुटाता था मैं उस पर अपना प्यार पागलों की तरह,
लेकिन वो घुमा फिरा के जुदाई की बात करती थी,

अंत में जब आज़ाद कर ही दिया मैंने मोहब्बत से उसे,
फिर साथ में रहने कि मिन्नतें बार बार करती थी..

9 टिप्‍पणियां:

  1. जे बात ..... बहुत खुब .... सत्य वचन भाई ...... छोरियॉ एसे ही महौल का गबडगोला कर देती है .......

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  2. हमे आपसे इससे भी अधिक संवेदनशील कृतियों की अपेक्षा है। उज्जवल भविष्य की कामना के साथ। आपका-आशीष

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