शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

पीके फिल्म बनाओ जाकर आप कराची में


ना महंत हूँ न पंडा हूँ,ना ही कोई पुजारी हूँ,
निज परम्परा और धरम का ना कोई व्यापारी हूँ,

मैं बस एक सनातन धर्मी,थोडा सा झुंझलाया हूँ,
आज शाम को आमिर तेरी फिल्म देखकर आया हूँ,

सीधे सीधे कुछ सवाल है,ज़रा खोलकर कान सुनो,
सुनो हिरानी,सुनो चोपड़ा,प्यारे आमिर खान सुनो,

इस दुनिया के हर मज़हब में कहाँ नही कमियां बोलो,
और अछूती रीति रिवाजों से है कब दुनिया बोलो,

इंसानों के बने बनाये तौर तरीके शामिल हैं,
हर मज़हब को अपने किस्से अपने लहजे हासिल हैं,

धर्म सनातन आडम्बर है,और कहानी गढ़ लेते,
लेकिन चोट मारने से पहले गीता ही पढ़ लेते,

आडम्बर ही था दिखलाना,तो कुछ और बड़ा करते,
हर मज़हब के आगे,इसका मुद्दा आप खड़ा करते,

केवल धर्म सनातन ही क्यों तुमको चुभा बताओ जी,
कहाँ नही आडम्बर,कोई मज़हब तो दिखलाओ जी,

आडम्बर है यदि शिव जी को दूध चढ़ाना,मान लिया,
गौ माता को चारा देना,तिलक लगाना,मान लिया,

तो फिर सारी दुनिया आडम्बर है बस आडम्बर है,
होली ईद दीवाली वैसाखी क्रिसमस आडम्बर है,

लक्ष्मी दुर्गा शिव गणेश गर राह पड़े आडम्बर है
तो मस्जिद के पत्थर पत्थर बहुत बड़े आडम्बर हैं,

भूल गए तुम टोपी जालीदार दिखाना भूल गए,
आडम्बर नमाज़ पढना है,ये बतलाना भूल गए,

अमरनाथ पर तंज कसे पर हज का चर्चा भूल गए,
मस्जिद बनने पर मिलता सरकारी खर्चा भूल गए,

अगर लेटकर मंदिर में आना जाना आडम्बर है
तो फिर या हुसैन कहकर कोड़े खाना आडम्बर है,

नहीं दिखाए तुमने कटते गाय बैल और बकरे क्यों,
केवल हिन्दू परम्परा के तौर तरीके अखरे क्यों,

हमने तो धागे बरगद के चारों ओर बंधाएं है,
तुमने हज में जाकर बोलो किसके चक्कर खाए हैं,

तुम ज्ञानी हो अगर तुम्हे मंदिर आडम्बर लगते हैं,
हमको भी मस्जिद के सब मंज़र आडम्बर लगते हैं,

सत्यमेव जयते के नायक,आधा सत्य दिखाया क्यों,
छुपा लिया इस्लाम,सनातन धर्म मिथक बतलाया क्यों,

ये सवाल कुछ ऐसे हैं जिनका जवाब देना होगा,
कलाकार हो समानता का भी हिसाब देना होगा,

इस पीके से खूब कमा लो,मौका तुमको दिया चलो,
पक्षपात जो किया आपने,माफ़ आप को किया चलो,

शर्त यही है थोड़ी हिम्मत लानी होगी छाती में,
अगली पीके फिल्म बनाओ जाकर आप कराची में


यह कविता मेरी नहीं है... 

गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

मजहब के नाम जिहाद है..



किसी माँ ने सुबह बच्चे का…
डब्बा तैयार किया होगा !
किसी बाप ने अपने लाल को..
खुलते स्कूल छोड़ दिया होगा !!
किसे पता था वह ..
अब लौटेगा नहीं कभी !
किसे पता था गोलियों से..
भून जायेंगे अरमान सभी !!
बच्चो में रब है बसता..
उस रब से मेरी फ़रियाद है !!
तालिबान यह कैसा तेरा …
मजहब के नाम जिहाद है !!
मेमनों की तरह बच्चे…
मिमियाए जरूर होंगे !
खौफ से डर कर आँखों में
आंसू आये जरूर होंगे !!
तुतलाये शब्दों से रहम की...
भीख भी तुझसे मांगी होगी !
अपने बचाव को हर सीमाये..
उसने दौड़ कर लांघी होगी !!
मासूमो के आक्रन्द से भी न पिघले..
हिम्म्त की तेरे देनी दाद है ! 
हे आतंकी... यह कैसा तेरा …
मजहब के नाम जिहाद है !!
भारत से दुश्मनी निभाने…
मोहरा बनाया उसने जिसे !
जिस साप को दूध पिलाया..
वही अब डस रहा उसे !
हे आतंक के जन्मदाता….
अब तो कुछ सबक ले !
यदि शरीर में दिल है ..
तू थोड़ा सा तो सिसक ले !
आतंक के साये ने हिला दी..
पाकिस्तान की बुनियाद है !
तालिबान यह कैसा तेरा…
मजहब के नाम जिहाद है !!
कौन धर्म में हिंसा को..
जायज ठहराया गया है !
कुरान की किस आयत में ..
यह शब्द भी पाया गया है !!
कब तक तुम्हारा बच्चा..
इस तरह बेबस रहेगा !
मांग कर देखो हाथ…
साथ हमारा बेशक रहेगा !!
सबक बहुत मिल गया अब..
आतंक की खत्म करनी मियाद है !
तालिबान यह कैसा तेरा…
मजहब के नाम जिहाद है !"

व्हाट्सएप पर मिली हुई एक कविता