रविवार, 27 अप्रैल 2014

चाहने वालों की तरह..

जिन्दगी जिसको तेरा प्यार मिला वो जाने,
हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह..

 जुस्तजू ने किसी मंजिल पे ठहरने न दिया,
हम भटकते रहें आवारा ख्यालों की तरह,

 मुझको मिला क्या मेरी मेहनत का सिला,
चंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह..

 हम से मायूस न हो ऐ शब-ए-दौराँ कि अभी,
दिल में कुछ दर्द चमकते हैं उजालों की तरह..

 गुनगुनाते हुए तू आ कभी उन सीनों में,
तेरी खातिर जो महकते हैं शिवालों की तरह..

 तेरे बिन रात के हाथों पे ये तारों के अयाग,
खूबसूरत हैं मगर जहर के प्यालों की तरह..

 हमसे भागा न करो दूर ग़ज़ालों की तरह,
हमने चाहा है तुम्हें चाहने वालों की तरह..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें