शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

ये शाम जरा ढल जाने दो


ये शाम जरा ढल जाने दो,
फिर किस्सा वही दोहराने दो..

एक मैं हूँ और एक ये मय है, 
अब आग जरा लग जाने दो..

देखेंगे कितनी बचेगी मय, 
हमको तो जरा तुम आने दो..

न जाने कब तक दौर चले, 
साक़ी को जरा शरमाने दो..

रिन्दों पे चढ़ी कुछ यूँ मस्ती, 
वो बोले आने दो आने दो..

समझेंगे तुम्हारी बातें सभी, 
पहले खुद को समझाने दो.. 

मय से भी ज्यादा नशा इनमें, 
तेरी आँखें है या पैमाने दो..

रूठा बैठा है रिन्दों का खुदा, 
उसको भी आज मनाने दो..

बन जाए न कोई बात कहीं, 
अब देर हुई घर जाने दो..

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