कानों में यकायक उठी बेबस
सी सिसकियां
मैंने पलट के देखा तो इक लड़की थी वहाँ
जब गौर से देखा तो आसमान फट गया
देखा तो मुझे दर्द का सैलाब फट पड़ा
आँखों में उसके जुल्म का तूफान फट पड़ा
पूछा जब उसने भाई तू क्यों नहीं आया
गैरों ने देख क्या किया तू क्यों नहीं आया
वो चोट जिस्म पर लिए चुपचाप खड़ी थी
वहशत के निशाँ तन पे थे पर मौन खड़ी थी
छह मर्दों की नामर्दी से अकेली लड़ी थी
आखिर में उसे लेने को फिर मौत खड़ी थी
तन खून से लथपथ था आँचल गिरा लिया
सर उसने मेरी बाँह में अपना छिपा लिया
मंजर ये देख पत्थर दिल भी पिघल गए
सूरज ने भी ये देख खुद को छिपा लिया
वो बोली क्या राखी है बस धागे का एक नाम
क्या बहन की हिफाजत भाई का नहीं काम?
दुशासनों ने फिर से घसीटी है द्रौपदी
क्यों कृष्ण ने बचाया नहीं बहन का सम्मान?
राखी है नाम भाई का बहनों को बचाना
राखी है नाम मर्द का औरत को बचाना
राखी है नाम अजनबी को बहन बनाना
फिर बहन की रक्षा में जी जान लगाना
पर यहाँ तो दस्तूर हैं हैवानों के जारी
खुद अपने ही होते हैं कई बार शिकारी
हर एक की जुबां पे हैं माँ बहन की गाली
हर एक जबां गंदी है हर आँख है काली
हे भाई तू सब बहनों की रक्षा सदा करना
दुशासनों की दुनिया में श्रीकृष्ण तुम बनना
हर द्रौपदी के सर पे अपना हाथ बढ़ाना
मानवता क्या होती है ये दुनिया को दिखाना
इतना था कहना उसका कि वो मंद हो गई
इस भाई के हाथों में वो विलीन हो गयी
दुनिया के सफर को यहीं पे खत्म कर चली
भगवान की गोदी में कहीं दूर हो चली..
मैंने पलट के देखा तो इक लड़की थी वहाँ
जब गौर से देखा तो आसमान फट गया
जो चल बसी वो मेरी बहन थी खड़ी वहाँ
देखा तो मुझे दर्द का सैलाब फट पड़ा
आँखों में उसके जुल्म का तूफान फट पड़ा
पूछा जब उसने भाई तू क्यों नहीं आया
गैरों ने देख क्या किया तू क्यों नहीं आया
वो चोट जिस्म पर लिए चुपचाप खड़ी थी
वहशत के निशाँ तन पे थे पर मौन खड़ी थी
छह मर्दों की नामर्दी से अकेली लड़ी थी
आखिर में उसे लेने को फिर मौत खड़ी थी
तन खून से लथपथ था आँचल गिरा लिया
सर उसने मेरी बाँह में अपना छिपा लिया
मंजर ये देख पत्थर दिल भी पिघल गए
सूरज ने भी ये देख खुद को छिपा लिया
वो बोली क्या राखी है बस धागे का एक नाम
क्या बहन की हिफाजत भाई का नहीं काम?
दुशासनों ने फिर से घसीटी है द्रौपदी
क्यों कृष्ण ने बचाया नहीं बहन का सम्मान?
राखी है नाम भाई का बहनों को बचाना
राखी है नाम मर्द का औरत को बचाना
राखी है नाम अजनबी को बहन बनाना
फिर बहन की रक्षा में जी जान लगाना
पर यहाँ तो दस्तूर हैं हैवानों के जारी
खुद अपने ही होते हैं कई बार शिकारी
हर एक की जुबां पे हैं माँ बहन की गाली
हर एक जबां गंदी है हर आँख है काली
हे भाई तू सब बहनों की रक्षा सदा करना
दुशासनों की दुनिया में श्रीकृष्ण तुम बनना
हर द्रौपदी के सर पे अपना हाथ बढ़ाना
मानवता क्या होती है ये दुनिया को दिखाना
इतना था कहना उसका कि वो मंद हो गई
इस भाई के हाथों में वो विलीन हो गयी
दुनिया के सफर को यहीं पे खत्म कर चली
भगवान की गोदी में कहीं दूर हो चली..
ये कविता मेरी नहीं है --- ये मेरे एक फेसबुक मित्र अग्निवीर ने लिखी है...
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahot achhi kavita hai bhai
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhaiya @imharish_ara
जवाब देंहटाएंBohot achhi....
जवाब देंहटाएं:(
जवाब देंहटाएं"खुद तो हूँ बुझ गई देकर के मैं हाथों में मशाल
देखना है चिंगारी क्या कहर करती है"
बहुत बढिया @jitendrakadel
जवाब देंहटाएंरुला दिया एक बार फिर....
जवाब देंहटाएंझंझोड दिया शब्दों ने कलम को
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