बुधवार, 18 अप्रैल 2012

ये बहरूपिये लोग

कुछ लोग इस जहाँ मे ऐसे भी तो होते हैं
जो होते हैं वो वो नही जो नही वो होते हैं

मन मे कुछ और जबान पर कुछ होता है
उनके बारे मे तो ख़ुदा को ही पता होता है

मीठे इतने ही की जैसे हो कोई चाशनी शहद
दिल से इतने कडवे कि तोडे नीम की भी हद

जिससे हो ग़र काम तो बना लेते उसे ही बाप
मतलब के लिये कर दे वो हर पाप ही माफ़

ठँडे खून के ही ये होतें हैं दुष्ट कुटिल कातिल
इनकी हर बात मे एक साज़िश ही है शामिल

तारीफ़ इतनी करेंगे की आप हो जाओ कायल
वक़्त आने पे कर दे ये तन मन भी घायल

चलता क्या इनके मन मे कोई नही है जानता
देख भोली भाली शक्ल न कोई इन्हे पहचानता

जब तक है काम तो बस आपके ही हैं साथ
काम निकलते ही दिखा देते ये हैं बस हाथ

बनाकर अपना ही तो बन जाते हैं ये हमराज
पीठ पीछे मतलब पर खोल देते हैं सब राज

ढोंग करते हैं कि ये हैं भगवान के सच्चे भक्त
ग़रीबो मासूमो पर दया नही है दिल भी सख़्त

छोटे बडे सब को ही बस ये लगा लेते हैं गले
वक़्त आने पे यही लोग दबा भी देते हैं गले

दौलत के भूखे हैं हवस वासना की भी है नज़र
सबके दिलो मे झूँठ मक्कारी से बना लेते घर

सवाल ये कि इन दुष्टो की अब कैसे करें पहचान
कैसे जाने कोई भला मानुष या है कोई शैतान

जवाब सीधा सादा है बस करना पक्का इरादा है
देखना है की ये शरीफ़ है या फ़िर कोई दादा है

उस व्यक्ति को एक किसी मुश्किल मे डालना है
असली नही बस उसे नकली स्थति मे डालना है

थोडी ही देर मे बस उसकी खुल ही जायेगी पोल
सूख जायेगा गला मूँह से भी ना निकलेंगे बोल

सच्चा दोस्त साथी प्यार रहता मुश्किलो मे खडा
झूँठा भागता आयेगा नज़र देख के मौसम कडा

आपके हमारे बीच भी हैं कुछ ऐसे ही बेहरूपिये
दिल के आईने वक़्त की धूप मे इन्हे परखिये

कहीं ऐसा ना हो की आप भी हो जायें शिकार
करके वफ़ा इनपे हो जाये इज़्ज़त भी तार तार

लिखी है ये कविता बस करने को ही होशियार
पढकर इसे वो भी शायद हो जायेंगे अब तैयार

हम दिल से करते हैं बस यही एक ही गुजारिश
दोस्त सच्चे हो आप पर हो मोहब्बतों की बारिश

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