सोमवार, 5 नवंबर 2012

मौत के नाम कर गया ...


वीरान मेरी सुबह शाम कर गया,
जबसे वो मुझको आखिरी सलाम कर गया,
फूलों के तोहफे जो दिया करता था मुझको,
वो आज काँटों की झाडी मेरे नाम कर गया,
जाने नहीं देता था जो मुझको शराब पीने,
आज वो खुद मुझको दारु के नाम कर गया,
लड़ते थे हर अपनों से भी जिसकी खातिर,
वो आज मुझे गैरों के नाम कर गया,
हसते थे जिसे हम अक्सर खुश देख कर,
देखो आज वो मेरा क्या अंजाम कर गया,
कहता था जो मुझको सभी के सामने अनमोल,
आज वो मुझको कौड़ियों के दाम कर गया,
जिसमे बस्ती थी मेरी खुद की जान,
आज वो ही मुझे बेजान कर गया,
दिया था हमने जिसे जिंदगी नाम,
आज वो ही हमने मौत के नाम कर गया...

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